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पवित्रता और नम्रता
पवित्रता
शक्तियों में सबसे अच्छी शक्ति है पवित्रता ।
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पवित्रता है : भगवान् के प्रभाव के अतिरिक्त और किसी प्रभाव को स्वीकार न करना ।
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धरती पर सच्ची पवित्रता है उस तरह सोचना जैसे भगवान् सोचते हैं, उस तरह इच्छा करना जैसे भगवान् इच्छा करते हैं, उस तरह अनुभव करना जैसे भगवान् अनुभव करते हैं । २४ सितम्बर, १९४५
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अगर आदमी केवल भगवान् के लिए और भगवान् द्वारा ही जीता है तो पूर्ण पवित्रता आ जाती है ।
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पवित्रता पूर्ण सचाई है ओर यह तुम्हें तब तक नहीं मिल सकती जब तक तुम पूरी तरह भगवान् के अर्पित न हो ।
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माताजी बताइये मैं 'आपकी' सेवा को पवित्र और मानवीय अशुद्धियों से बिलकुल बेदाग कैसे रख सकता हुं ?
ऐसा चाहने और हमेशा उसके लिए अभीप्सा करने से । *
१६४ पूर्ण पवित्रता : समस्त सत्ता अहंकार से मुक्त हो जाये ।
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पूर्ण पवित्रता की शक्ति : भगवान् के प्रभाव के अतिरिक्त और किसी चीज को स्वीकार न करने की शक्ति ।
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मानसिक पवित्रता : एक ऐसा दर्पण जो विकृत नहीं करता ।
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पूर्ण मानसिक पवित्रता : स्वच्छ दर्पण जो सदा भगवान् की ओर मुड़ा रहता है ।
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सर्वांगीण मानसिक पवित्रता : नीरव, सजग, ग्रहणशील, भगवान् पर एकाग्र-यह पवित्रता पाने का पथ है ।
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प्राणिक पवित्रता : कामना के विलयन से आरम्भ होती है ।
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सामूहिक पवित्रता : एक बहुत मूल्यवान् उपलब्धि, जिसे पाना बहुत कठिन है ।
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दिव्य पवित्रता : पूर्ण सरलता में, उसे केवल होने में ही सुख मिलता १६५ |